द गर्ल इन रूम 105
अध्याय 34
तीन महीने बाद
"थोड़ा-सा ऊपर, मैंने कहा। कारपेंटर और उसके असिस्टेंट ने शॉप पर लगे साइनबोर्ड को छह इंच और उठा दिया। मैंने जोर से उसका नाम पड़ा
'ज़ेड डिटेक्टिव्ज़।'
हमारी इस नई एजेंसी का नाम सौरभ ने ही सुझाया था। हमने मालवीय नगर में एक छोटी सी, सौ फीट की दुकान रेंट पर ली थी। हमने अपना एक वेबपेज और सोशल मीडिया अकाउंट भी बना लिया था। "मुझे बताओ कि इस नाम के पीछे क्या लॉजिक है?" मैंने हमारी एजेंसी की दो वुडन चेयर्स में से एक पर
बैठते हुए कहा।
'जेड अल्फाबेट का आखरी अक्षर होता है ना। द अल्टीमेट वन जैसे कि बीवीआईपी लोगों को ज़ेड क्लास की सिक्योरिटी दी जाती है, जो अल्टीमेट होती है। फिर यह सुनने में भी कूल लगता है, ' सौरभ ने कहा। "तो क्या इसलिए ही तुमने इसका नाम ज़ेड रखा है?" मैंन त्योरी चढ़ाते हुए कहा। "अब डिटेक्टिव तो तुम भी हो, तो तुम्हीं पता कर लो,' सौरभ ने कहा।
मैं मुस्करा दिया। 'उसने तुम्हारे साथ जो किया, उसके लिए मैंने उसे कभी पसंद नहीं किया था। लेकिन बाद में मुझे समझ आ गया कि आखिर वो भी एक इंसान ही थी। फिर उसी के कारण तो हम आज इस नई राह पर चल पाए हैं। वो एक छोटा-सा ट्रिब्यूट तो डिजर्व करती है, सौरभ ने कहा।
"थैंक यू' मैंने कहा और सौरभ के बाल बिखरा दिए। "और हम बिना मिठाइयों के कोई दुकान कैसे खोल सकते हैं? बेट, मैं उस नई मिठाई की दुकान वाले को फोन लगा रहा हूं। तुम्हें एक बार उसकी जलेबियां ट्राई करनी चाहिए।'
'तो तुम लोगों ने एक डिटेक्टिव एजेंसी भी खोली है?" साइबरसेक के सीनियर वीपी कार्ल जोन्स ने मुझसे पूछा। मैं गुड़गांव में उनके ऑफिस में बैठा था, जिसकी खिड़की से मेट्रो ट्रैक का एक मटमैला सा नज़ारा दिखता था। 'हां, मैंने अपने दोस्त सौरभ के साथ यह एजेंसी खोली है। हमने जारा लोन केस को सुलझाने में पुलिस की
मदद की थी। फिर यह हमारी हॉबी भी है।' 'हमने ज़ारा केस के बारे में सुना था। वो आईआईटी वाली लड़की, राइटर एनीवे, हम एक साइबर सिक्योरिटी फर्म हैं और इंवेस्टिगेशन स्किल्स से हमें मदद ही मिलती है।' 'हमने इंवेस्टिगेशन का वैसा कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया है।"
तो फिर इस केस को सुलझाने में तुम्हारी सबसे ज्यादा मदद किस चीज़ ने की?"
"केवल एक जिज्ञासु और खुला दिमाग़ हमने पहले से कोई धारणाएं नहीं बना रखी थीं और हम हार मानने को तैयार नहीं थे।'
"केवल इन गुणों की मदद से ही आप बहुत दूर तक जा सकते हैं। केवल एक केस ही नहीं, बल्कि जिंदगी में